मुझे हकीकत में न ले चलो दोस्तों,
बस इक बार कहूँगा बेगुनाह हूँ दोस्तों|
कदम पहले बढ़ाने की कोशिश की हर सफ़र में
ठहर गया तूफानों से रास्ते जब बदल गए दोस्तों|
हर हाथ सहारे को बढतें रहे हर पल
गलत थे जो उसको उधार कह गए दोस्तों|
चोट खाकर अभी संभल पाए थे नहीं
खुद ही आँखों में आँसू देखे थे दोस्तों|
तमन्नायें देखो तो लोकेन्द्र भी रखता है
बस आप अपनी मंजिल फ़तह करो दोस्तों|