आँखों पर जोर डालो तो रास्ता दिखेगा
जितना वहम है कोहरा उतना घना नही होगा |
सैंतालिस में फरमान जारी कर बैठे थे
हर जन को आजादी का अहसास हुआ होगा |
आज भी भुखमरी पर बहस जारी थी
होंठो पर हंसी, हाथों में जाम भी होगा |
उजली खादी की फिर जमघट सजी थी
उस भूखी माँ के तन पर चिथड़ा रहा होगा |
इन्कलाब कल फिर से उठ न सकी
सत्ता तले कोई देशभक्त कुचला गया होगा |
है जवाबदेही किसकी इन प्रश्नो की
यार सदन में यह प्रश्न बेबुनियादी रहा होगा |
10 टिप्पणियां:
बहुत बेहतरीन उम्दा रचना!! बधाई..
बहुत सुंदर लिखा आपने !!
lokendra ji,
nav versh ki shubh kaamnayein,
is rachna mein bahut achcha kataksh kiya aapne,ek dam sahi likha hai, badhai.
Surinder
जिंदगी की सच्चाई को बखूबी सजा दिया है आपने। बधाई।
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भारतीय सेना में भी है दम, देखिए कितना सही कहते हैं हम।
है जवाबदेही किसकी?
यह प्रश्न हर कोई पूछना चाहता है .....लेकिन कैसे पूछे? बहुत अच्छी रचना है.
सुंदर भाव.
हर बार की तरह जानदार अभिव्यक्ति
bhaut achhi rachna .
आँखों पर जोर डालो तो रास्ता दिखेगा जितना वहम है कोहरा उतना घना नही होगा
bahut kuch nye vichar deti abhivykti
acchi bat kahi hai vastav me desh ab us haal me bhi nahi hai jitna anuman lagaya jata hai , hum sudhar rahe hain to jahir hai desh to sudhrega hi
profound n intense write...bauaht achhe
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