अभी कुछ दिन पहले मै एम्स में रक्तदान करने गया था। हांलाकि इसे दान की श्रेणी में नही रख सकते क्योंकि मै किसी अपने की जरूरत पर रक्त देने गया था। मेरे मित्र विकास के पिता जी का यहाँ ब्रेन ट्यूमर का ऑपरेशन होने वाला था, इसीलिए यहाँ के डॉक्टरों ने चार यूनिट ब्लड की मांग की थी। जिसके लिए हम चार लोग ब्लड बैंक पर इकट्ठा होकर फॉर्म भर रहे थे।
तभी एक अन्जान व्यक्ति आकर मुझसे मिला और पूछा की आप लोगो को कितने यूनिट ब्लड की जरूरत है। उसकी हिन्दी बहुत ही अशुध्द थी और उसे समझना भी थोड़ा सा कठिन था। मैंने कुछ सोचकर जवाब दिया चार। उसने फिर मुझसे पूछा क्या आपके पास एक डोनेटर ज्यादा है। मैंने फ़ौरन जवाब दे दिया अभी तो कोई नही है, चार की जरूरत थी और हम चार ही हैं। फिर उसने अपनी टूटी-फूटी हिन्दी में बताया की वो आंध्र प्रदेश से अपने पिता के ब्रेन ट्यूमर के ऑपरेशन के लिए आया है और उसे भी चार यूनिट ब्लड की जरूरत है, जबकि उसके पास सिर्फ़ तीन ही डोनेटर हैं।
एक बात यहाँ एकदम सच कहूँगा की मैंने उस समय पल्ला झाड़ते हुए कहा की अभी तो हमारे पास कोई नही है लेकिन हमारे साथ के ही एक लोग ने उनकी मदद के लिए किसी को फोन करके बुलाया और उसने आने को भी कहा तो लगा जैसे मेरे ऊपर से कोई बोझ उतर गया है। लेकिन कुछ समय बाद जब ये पता चला की किसी कारण वश वो नही आ रहा है तो सबकी नजर एक बार फिर मेरे ऊपर टिक गई। मैंने अपनी नजरे भी बचाने की कोशिश की। तब उस व्यक्ति जिसका नाम किरण कुमार था की मायूस आँखें देखकर मुझे ग्लानि महसूस हुई और मैंने ख़ुद को धिक्कारतें हुए ये कहा की सबको मानवता का पाठ पढाने वाला आज ख़ुद क्यो इससे भाग रहा है और फिर अपनी प्रकृति के ही अनुरूप मैंने इस ऊहापोह से निकलने के लिए, मदद की चाह में और उनकी रक्त की जरूरत की पूर्ति के लिए अपने एक छोटे भाई सौरभ को फोन किया। जो यहाँ पहाड़गंज में रहकर एम. बी. ए. की तैयारी कर रहा था।तभी एक अन्जान व्यक्ति आकर मुझसे मिला और पूछा की आप लोगो को कितने यूनिट ब्लड की जरूरत है। उसकी हिन्दी बहुत ही अशुध्द थी और उसे समझना भी थोड़ा सा कठिन था। मैंने कुछ सोचकर जवाब दिया चार। उसने फिर मुझसे पूछा क्या आपके पास एक डोनेटर ज्यादा है। मैंने फ़ौरन जवाब दे दिया अभी तो कोई नही है, चार की जरूरत थी और हम चार ही हैं। फिर उसने अपनी टूटी-फूटी हिन्दी में बताया की वो आंध्र प्रदेश से अपने पिता के ब्रेन ट्यूमर के ऑपरेशन के लिए आया है और उसे भी चार यूनिट ब्लड की जरूरत है, जबकि उसके पास सिर्फ़ तीन ही डोनेटर हैं।
मैंने उसे पूरी स्थिति की जानकारी दी और उसके स्वयं पर छोड़ दिया की वो उन्हें आगामी कई प्रतियोगी परीक्षाओं के नजदीक रहने के बावजूद जिसमे पहली परीक्षा पॉँच दिन बाद थी, रक्तदान करेगा या नहीं। तभी उसने मुझे और असमंजस में ये कहकर दल दिया की भय्या आप जैसा कहिये। उस समय मुझे कुछ सूझ नही रहा था। मैंने फिर उससे धीमे से कहा की मुझे लगा है तभी मैंने तुम्हे फोन किया है और शायद उसने मेरी परेशानी को समझकर कहा की मै आ रहा हूँ। मैंने उन लोगो को बताया की हाँ वो आ रहा है और हम चारो खून देने चले गए।
जब मै बहार निकला तो किरण मुझे वही बहार मिला। उस समय सुबह के करीब ग्यारह बज रहे थे। वही पर मैंने उसका मोबाईल नम्बर लिया और हम जूस पीने चले गए। सौरभ कुछ देर बाद एम्स पहुँचा। तब तक ब्लड बैंक में काफी भीड़ हो गई थी और हम लोग नम्बर लगाकर वहीं काफी देर तक खड़े रहे। फिर कुछ देर बाद लंच ब्रेक भी हो गया और समय पर समय लगता चला गया। सौरभ के साथ उन तीनो का ब्लड करीब साढ़े थीं बजे निकाला गया। खून देने के बाद वास्तव में वें लोग काफी कृतज्ञ थे और भविष्य में कभी हैदराबाद आने पर बार-बार मिलने पर ही जोर दिया। वहां से उन्होंने हम लोगो को जबरदस्ती ले जाकर जूस पिलाया और वहीं से हम लोग विदा हुए।
एक दिन बाद जब वहीं एम्स में किरण की माँ विकास से मिली तो उन्होंने उसे बहुत सा आर्शीवाद दिया और इस बात पर कृतज्ञता व्यक्त किया की हम लोगो ने वाकई में उनकी बहुत मदद की है। शायद इसका फल भी मिला है, सौरभ को आगामी परीक्षा में सफलता मिली और उसका चयन टाटा-धान अकेडमी मदुरई में एम. बी. ए. के लिए हो गया।
21 टिप्पणियां:
लोकेन्द्र जी,
ऐसे परोपकार सीधे खुदा के दरबार में हाजिरी लगाते हैं ....वो किसी न किसी रूप में आपको दुगुना देगा .....!!
I am not aware why even today educated persons are afraid to donate the Blood.If even once in their life time they could see & read the gratitude in the eyes of the patient & his close relatives , they would come again & again to donate it. But greatness lies , if you donate the blood without knowing who is the taker.
you have really done good job by writing on the subject honestly & candidly. Thanks from me also.
bhut khoob bdhai
neki kar aur dariya mein daal do.
aise me diamag ki nahi dil ki aawaj sunne ki jarurat hoti hai.aapka bahut bahut dhanyavad.aapne uski madad ki.aur han daad deni chahiye aapki himmat ki aapne apne antarman ki dwand sthiti ko bataya.
aapke is lekh mein kuch baatein aa ispast hain.ek bharat ke liye yeh ek aachi suruwaat hai.
do gud & have d bestest.............
do gud & hav d bestest.....
किसी जरूरतमन्द की मदद करने से बढकर कोई धर्म नहीं......ओर आपने अपने इस धर्म का बहुत अच्छे से पालन किया।....सुन्दर शिक्षाप्रद संस्मरण के लिए धन्यवाद।
bahut hi sarahniye kadam.......
sachchi se likha vaktavya man ko choo gaya...... aapne bahut achcha kaam kiya
बहुत बढ़िया! इस नेक काम के लिए बहुत बहुत बधाई !
मै कुछ कहना चाहूँगा आप लोगो से मैंने ये वाह वाही लेने के लिए न किया है न लिखा है....... और न मैंने यहाँ किसी गैर जरूरत मंद को रक्त दिया है वो तो किसी और ने दिया है....... मैंने इस घटना का जिक्र बस इसलिए किया है की शायद कोई बिना किसी संकोच के ही किसी की ऐसी मदद कर सके....... अपना सहयोग सबको दे.......
धन्यवाद.........
behot baar esa hota hai ki hum nirnay laney mai ghabratey hain. or ek sahi nirnay dusro ko perna deta hai ki aaj bhi insaniyet kayam hai.:)
"सुन लेना फरियाद किसी की,
होती है इमदाद बड़ी
आंसू को जो कन्धा दे दे,
चारों तीर्थ नहाता है" !!!
आज की आवाज
shukriya, aapka blog bhi behad accha hai.
-latahaya
आपका लेख पढ़ कर मैं भी कृतज्ञता से नत मस्तक हो गयी, अगर हमारे देश के नौजवानों की सच इतनी उत्कृष्ट है तो भारत का भविष्य वास्तव में उज्ज्वल है.... बहुत उज्जवल है...
खुश रहिये...
लोकेन्द्र जी रक्त दान महाँ कल्यान अगर लोग पता नहीं खून देने से क्यों डरते हैं खून दे कर तो न्या शुध खून बनता है पुराने हकी्म वैद तो कई बिमारिओं मे अदमी की नाडी कात कर खून निकाल देते थे तकि खून के विकर से बिमारी सही हो जाये ये आप्ने परोपकार का काम किया है शुभकामनायें
Man Changa to kathauti me ganga!!!
लोकेन्द्र विक्रम सिंह जी टैग पर आपसे जुड़ने का समय नहीं मिलता है..लेकिन आपके ब्लॉग पर रक्तदान वाले लेख को देख कर मै रुक नहीं पाया...मेरा भी यही मानना है कि परोपकार कभी बेकार नहीं जाता..इसका फल उसी समय मिल जाता है जब आप किसी पर कोई उपकार करते हैं...उपकार करने के बाद जो खुशी मिलती है उसका एहसास सिर्फ परोपकारी ही जान सकता है..वैसे आपको जो संस्कार मिला है सचमुच में आपके पिता,माता और परिवार का योगदान है....मैं आपके माता पिता को प्रणाम करता हूं...धन्यवाद
लोकेन्द्र विक्रम सिंह जी टैग पर आपसे जुड़ने का समय नहीं मिलता है..लेकिन आपके ब्लॉग पर रक्तदान वाले लेख को देख कर मै रुक नहीं पाया...मेरा भी यही मानना है कि परोपकार कभी बेकार नहीं जाता..इसका फल उसी समय मिल जाता है जब आप किसी पर कोई उपकार करते हैं...उपकार करने के बाद जो खुशी मिलती है उसका एहसास सिर्फ परोपकारी ही जान सकता है..वैसे आपको जो संस्कार मिला है सचमुच में आपके पिता,माता और परिवार का योगदान है....मैं आपके माता पिता को प्रणाम करता हूं...धन्यवाद
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