है इक जज्बा इश्क़
तो उसे इत्तेफाक मान ले कैसे,
उनकी सोख अदाओं को
मोहब्बत की बुनियाद मान ले कैसे,
करते रहे गुज़ारिश
हर पल
हर क्षण
हर इंतज़ार की खातिर
जो लमहो में बीता हो
उसे सदी मान ले कैसे,
वो आरजू
वो सितम
वो कशिश
जो थी रूपहले पर्दे पर
वो कल था
उसे आज मान ले कैसे,
इक जुनून को भर के
लहरों की तरह बहते हुए
दीवानगी के साथ
बेताबियों के बवण्डर में
हैरानियों को संजो कर
जो ख्वाब हैं
उसे नींद मान ले कैसे,
कुछ तमन्नाओं का जज्बा
कुछ जीवन की उलझी हुई पहेली
कुछ मेरी अनकही बातें
कुछ उनकी न सुनने की आदत
फिर भी निश्छल अनंत की
जिस गहराई में डूबे हैं
उसे समंदर मान ले कैसे,
संवेदनओं के संसार में
अभिव्यक्ति की इक दौड़ है
भावनाओं के महासमर में
एहसासों का पतझड़
है जो भी ये इश्क़
रिवायत या रूहानियत
जो मेरा फरिश्ता है
उसे खुदा मान ले कैसे..!
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