सोमवार, 11 जनवरी 2010

आँखों पर जोर डालो तो रास्ता दिखेगा...


आँखों पर जोर डालो तो रास्ता दिखेगा 
जितना वहम है कोहरा उतना घना नही होगा |

सैंतालिस में फरमान जारी कर बैठे थे 
हर जन को आजादी का अहसास हुआ होगा |

आज भी भुखमरी पर बहस जारी थी 
होंठो पर हंसी, हाथों में जाम भी होगा |

उजली खादी की फिर जमघट सजी थी 
उस भूखी माँ के तन पर चिथड़ा रहा होगा |

इन्कलाब कल फिर से उठ न सकी 
सत्ता तले कोई देशभक्त कुचला गया होगा |

है जवाबदेही किसकी इन प्रश्नो की 
यार सदन में यह प्रश्न बेबुनियादी रहा होगा |

10 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बेहतरीन उम्दा रचना!! बधाई..

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुंदर लिखा आपने !!

SURINDER RATTI ने कहा…

lokendra ji,
nav versh ki shubh kaamnayein,
is rachna mein bahut achcha kataksh kiya aapne,ek dam sahi likha hai, badhai.
Surinder

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

जिंदगी की सच्चाई को बखूबी सजा दिया है आपने। बधाई।
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खाने पीने में रूचि है, तो फिर यहाँ क्लिकयाइए न।
भारतीय सेना में भी है दम, देखिए कितना सही कहते हैं हम।

The Stone Angel ने कहा…

है जवाबदेही किसकी?
यह प्रश्न हर कोई पूछना चाहता है .....लेकिन कैसे पूछे? बहुत अच्छी रचना है.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

सुंदर भाव.

Kulwant Happy ने कहा…

हर बार की तरह जानदार अभिव्यक्ति

शोभना चौरे ने कहा…

bhaut achhi rachna .
आँखों पर जोर डालो तो रास्ता दिखेगा जितना वहम है कोहरा उतना घना नही होगा
bahut kuch nye vichar deti abhivykti

कौशलेन्द्र ने कहा…

acchi bat kahi hai vastav me desh ab us haal me bhi nahi hai jitna anuman lagaya jata hai , hum sudhar rahe hain to jahir hai desh to sudhrega hi

Saumya ने कहा…

profound n intense write...bauaht achhe