- आज इक याद ने तोहफा दिया मुझको
- फिर उसकी दोस्ती का भरम दिया मुझको,
- कभी जो जख्म मिलें थे उससे तमगों की तरह
- फिर उसमे कमियों ने दर्द दिया मुझको,
- इक अहसान इस याद का फिर भी रहा
- पिछले दर्द की दवा मिलीं इक दर्द से मुझको,
- छिपाकर गम हमने हंसने की कोशिश की
- मगर झूठी हँसी ने सिर्फ़ आंसू दिया मुझको,
- वक्त का क्या पता कब साथ मेरा छोड़ दे
- काश इक बार वो फिर साथ मिलता मुझको,
- तन्हाई जब भी बढ़ी यादों की खिड़की खोल दी मैंने
- जहाँ मिल भी जाती दोस्ती की सादगी मुझको,
- उम्र के रास्ते पर चलते गए अब हम
- गुजरे हुए मील के पत्थर दिखते गए मुझको,
- वक्त दबे पावों जायें और आँखे मीचें उसकी
- शायद वो मेरे स्वर-शब्दों से पहचाने मुझको,
- बड़ी मुश्किल है अब मेरी बागबाँ से उसकी दोस्ती चलना
- है इबादत का सिला ये तो कबूल नही मुझको,
- दोस्त जाकर उससे कहना कि उसे भूल गए हम भी
- गौर से देखना आँखों से क्या कहता है वो मुझको !!
बुधवार, 10 दिसंबर 2008
"इक याद का तोहफा"
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
3 टिप्पणियां:
aap likh achha rahe ho aaj hi aapke blog pe aaya hun.. bahot hi achhi rachana padhane ko mili bhav badhiya hai magar likhate likhate aur mukammal hoti jayegi rachana.. bas jari rahe....
arsh
बढ़िया है..जारी रहें.
meri jindagi ka pahla pyar; aur ;ek yaad ka tohfa;
dono ka tital change kar do
bhawnaye khul kar ukeri hain....
एक टिप्पणी भेजें