ये नम हवायें
बहुत हैं जख्मी
सम्भलकर चलो
कहीं ये दर्द न दे जायें,
देखने में फूलों की सेज होगें वों
अहसास में काटों की चुभन देंगें जो
महक मिलने पर दोस्त न समझ लेना
वरना रंगीन मुस्कुराहट की सजा देगा वो,
निकल के इस माया के सरोवर से
अब इक बागबां की तलाश कर तू
अपनी छांव में बैठाकर
सूखे पत्तो से भी अहसासों में चमक दे जो !!
3 टिप्पणियां:
निकल के इस माया के सरोवर से
अब इक बागबां की तलाश कर तू
अपनी छांव में बैठाकर
सूखे पत्तो से भी अहसासों में चमक दे जो
gehrebhav,sunder nazm
बहुत सुन्दर लगी यह रचना
आपकी ये रचना बहुत अच्छी लगी , जीवन की वास्तविकता के करीब ले जाने वाली.
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