सोमवार, 13 अप्रैल 2009

"तलाश..."

ये नम हवायें
बहुत हैं जख्मी
सम्भलकर चलो
कहीं ये दर्द न दे जायें,
देखने में फूलों की सेज होगें वों
अहसास में काटों की चुभन देंगें जो
महक मिलने पर दोस्त न समझ लेना
वरना रंगीन मुस्कुराहट की सजा देगा वो,
निकल के इस माया के सरोवर से
अब इक बागबां की तलाश कर तू
अपनी छांव में बैठाकर
सूखे पत्तो से भी अहसासों में चमक दे जो !!

3 टिप्‍पणियां:

mehek ने कहा…

निकल के इस माया के सरोवर से
अब इक बागबां की तलाश कर तू
अपनी छांव में बैठाकर
सूखे पत्तो से भी अहसासों में चमक दे जो
gehrebhav,sunder nazm

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत सुन्दर लगी यह रचना

Parumbika ने कहा…

आपकी ये रचना बहुत अच्छी लगी , जीवन की वास्तविकता के करीब ले जाने वाली.