मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

"निष्काम प्रेम बनाम रोमांटिक लव..."

कुछ दिनों पूर्व मेरे द्वारा लिखे गए लेख शाश्वत प्रेम या फटाफट मोहब्बत में मैंने डोपामाईन नामक रसायन के श्राव से प्यार रुपी आन्नद की शुरुआत का जिक्र किया था। परन्तु एक प्रश्न इसमे छिपा रह गया था की आख़िर फटाफट मोहब्बत अर्थात् रोमांटिक लव में और शाश्वत प्यार अर्थात् निष्काम प्रेम यदि एक ही प्रकार के रसायन के श्राव से होता है तो फिर शाश्वत प्यार में क्यों कोई व्यक्ति किसी अनजान व्यक्ति से बिना कुछ पाने की चाहत के बगैर उसका पूरा ख्याल रखतें हैं और यहाँ तक की मर मिटने के लिए तैयार हो जाते हैं।
इस प्रश्न के उत्तर में मुझे एक समाचार पत्र के माध्यम से ज्ञात हुआ की फटाफट मोहब्बत के दौरान दिमाग का तीन हिस्सा काम करता है जबकि शाश्वत प्रेम दिमाग के सात अलग-अलग हिस्सों के एक साथ सक्रिय होने से पैदा होता है। दिमाग के इन सातों भागो के सक्रिय होने के फलस्वरूप डोपामाईन के श्राव से आन्नद, खुशी एवं प्यार की भावनाएं पैदा होतीं हैं। प्यार के इस सर्वोच्च शिखर पर कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति से बिना किसी चाहत के कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाता है चाहे उससे उसका खून का रिश्ता न ही हो।
अब जब ऐसे कैमिकल लोचा के शोध पत्रों का बखान पूरे विश्व में किया जा रहा है तो इस पर देवदास युगीन प्रेमियों की प्रतिक्रिया आना लाजिमी ही है। उनको इस बात पर बेहद रोष है की एक रसायन में ही उनके अमर प्रेम को समेट कर रख दिया है। आख़िर राधा और कृष्ण के प्रेम की चर्चा हमारे देश में प्राचीन कल से ही चली आ रही है तथा उन्हें एवं आधुनिक काल में जन्मे कुछ प्रेमी युगलों को आधार बनाकर प्रेम के ये पुजारी अपने निष्छल प्रेम पर एक नही बल्कि सात-सात जन्मो को न्यौछावर करने की बात करतें हैं।
इधर फटाफट मोहब्बत में सक्रिय प्रेमी युगलों पर डोपामाईन का असर कुछ ही देर तक दिखता है, जिसका प्रमाण भी मुझे अपने एक परिचित से मिला। अभी हल ही में उनको तीसरे या चौथे अमर प्रेम की प्राप्ति हुई है और शायद रसायन के प्रभाव से अपने को एक बार फिर राधा-कृष्ण, शकुंतला-दुष्यंत एवं अन्य प्रेम के पुजारियों के प्रतिरूप में स्वयं को पा रहें हैं।
अब शायद इस प्रकार के फटाफट प्रेम रोगियों के बारे में आगे कोई शोध पत्र प्रस्तुत हो तो शायद उसमे वैज्ञानिक ये कहें की इन लोगो में डोपामाईन का श्राव अत्यधिक या रुक-रुक के होता है या फिर उनके डोपामाईन के रासायनिक संगठन में कुछ कमियों को बताये जिससे उनका कैमिकल लोचा पूर्ण नही हो पाता फलस्वरूप उनके प्रेम सम्बन्ध में बिखराव आता है एवं पुनः श्राव पर एक नया प्रेम सम्बन्ध जन्म ले लेता है।
खैर सभी प्रकार के प्रेम पुजारियों की बातें तो चली आ रही हैं एवं चलती ही रहेगीं। परन्तु सबसे अहम् मुद्दा यही है की वर्तमान समय में कौन सा प्रेम अत्यधिक यथार्थपूर्ण, सम्रद्ध एवं सार्थक है - जीवन के एक बहुमूल्य उपहार के फलस्वरूप शाश्वत प्यार या दिमाग की एक उपज मात्र फटाफट मोहब्बत !

4 टिप्‍पणियां:

इष्ट देव सांकृत्यायन ने कहा…

देखिए भाई, सुविधाजनक तो फटाफट वाला ही मामला है.

रंजू भाटिया ने कहा…

सही लिखा आपने मैंने भी इसी तरह की बात कुछ कड़ियों में यहाँ लिखी थी ...वक़्त रहने पर अवश्य पढ़े ...शुक्रिया

http://ranjanabhatia.blogspot.com/2009/02/blog-post_13.html

Arvind Mishra ने कहा…

Interesting!

silky ने कहा…

A long research is looking for a simple answer!! agar boring life me masala chahiye to... its a gud option but u even cant touch that sense of satisfaction which u feel when u r in a TRUE LOVE.
ur words have great sense..keep it up.