शनिवार, 24 अक्तूबर 2009

"पल-पल बढ़ती हुयी..."

एकांत में बैठा मै कुछ सोच रहा था की तभी कुछ लिखने की चाह में मैंने कलम उठा ली| फिर जो भावनाए निकली वो अब आपके सामने प्रस्तुत है.....

पल-पल बढ़ती हुई 
रिश्तों की गहराई में 
खामोश निगाहों से 
कहती थी वो
कुछ बातें, 
समझ बनी तो 
कुछ था समझा 
लफ्ज नही 
फिर भी दे पाया, 
अब चाहूँ तो 
वो दूर खड़ी है 
बन्धन में बस 
एहसासो की डोर से, 
तमन्नाओं को फिर भी 
मार रहा हूँ 
नई उमंगें 
लाने को,
फिर भी कोई 
वजह है जो 
दिल को
इंतजार रहता है |

23 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

छोटी सी उमर में ही लग गया रोग.....
हा....हा....हा....
बेहतरीन रचना.......

M VERMA ने कहा…

समझ बनी तो
कुछ था समझा
तो यह समझ बनने से पहले की "समझ" थी. चलो कोई बात नही इंतजार की डोर तो हाथ में है ही.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

Udan Tashtari ने कहा…

बेहद भावपूर्ण...बधाई.

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

यह इंतजार ही जीवन है। अच्‍छी रचना के लिए बधाई।

Kulwant Happy ने कहा…

रिश्ता कभी खत्म नहीं होता। बहुत शानदार लिखा है।

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

bahut badhiyaa!!

ओम आर्य ने कहा…

एक निहायत सुन्दर भाव से सुसज्जित रचना....बधाई!

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

नारायण प्रसाद ने कहा…

हुयी ---> हुई

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत भावभरी रचना !!

निर्मला कपिला ने कहा…

वाह बेटा ये क्या सुन रही हूँ अरे तुम्हें तो पढने भेजा है। और तुम र्प्ग लगा बैठे हो? अच्छा नहीम होता ये रोग । खैर कविता बहुत अच्छी भावमय है। मगर अभी नासमझ ही बने रहो। बहुत बहुत आशीर्वाद।

Crazy Codes ने कहा…

ek intajaar hi hai jo jeevan bhar kahin na kahin bahut andar humare dil mein rahti hai... achhi rachnayein hai aapki...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

वो दूर खड़ी है
बन्धन में बस
एहसासो की डोर से,
तमन्नाओं को फिर भी
मार रहा हूँ
नई उमंगें
लाने को,
फिर भी कोई
वजह है जो
दिल को
इंतजार रहता है |

wah! in panktiyon ne dil ko chhoo liya....behtareen alfaazon ke saath ek behtareen rachna.....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

फिर भी कोई
वजह है जो
दिल को
इंतजार रहता है ......

बहुत खूब लिखा है ......... अक्सर मोहब्बत की शुरुआत में ऐसा ही होता है .......

Raj Dutt Singh ने कहा…

Nice...one...

Awantika singh ने कहा…

intazar intazar bas yahi hai ya pyaar
accha likha hai apne.


regards

awantika singh

padmja sharma ने कहा…

पल -पल बढ़ता हुआ हसास गहराई की ओर मोड़ता है . सुंदर भाव के लिए बधाई .

कौशलेन्द्र ने कहा…

bahut acche, keep it up

umeed ka daman nahi chota karte,
kyunki, saath chute to riste nahi toda karte.

Amit K Sagar ने कहा…

टिपण्णी के तौर पर मैं आपकी ही कविता को यहाँ फिर से रख देना चाहता हूँ बस!

Arshia Ali ने कहा…

हूँ, ये तो मामला गडबड लगता है। रब खैर करे
--------
स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाती तकनीक।
चार्वाक: जिसे धर्मराज के सामने पीट-पीट कर मार डाला गया।

Dr. kavita 'kiran' (poetess) ने कहा…

लोकेन्द्र जी आपने मेरे शेर सराहे मेरे ब्लॉग पर आये फोलोवेर बने बहुत बहुत शुक्रिया.
रिश्तों के बारे में मैं भी एक राय रखती हूँ अगली बार मेरे ब्लॉग पर आयें तब जरूर देखें.
आपकी रचनाएँ सीधी सरल हैं .अच्छी लगती हैं.

Reetika ने कहा…

atyant samvendansheel!! likhte rahe!!

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

khamoshi kee bhi apni zuban hoti hai.lafz nahi magar asar bahut rakhtee hai..