गुरुवार, 17 सितंबर 2009

"कागज के जहाज अक्सर उछाला करतें हैं..."

कुछ घटनाओं को जब मैंने कल्पना के चादर में लपेटा तो यही पंक्तियाँ बन पड़ी। जिसमे मैंने हास्य का तड़का देने का भरपूर प्रयास किया है। ये मेरा हास्य का प्रथम प्रयास अब आपके सामने प्रस्तुत है.........



आज भी हम ठण्डी आहें भरा करतें हैं
कागज के जहाज अक्सर उछाला करतें हैं,
कभी थी जिन्हें हमदम बनाने की चाहत
छत पर बैठ उनकी खिड़कियों में झाँका करतें थे,
देखें कोई जब, नजरें किताबों में उतारें हम
तस्वीर उन्ही की बनाया करते थे,
हम आज भी ठण्डी आहें भरा करतें हैं
कागज के जहाज अक्सर उछाला करतें हैं।

आखें उनसे चार हुई थी जब
वो नजरों से कुछ तीर चलाया करते थे,
दिल जब घायल हो गया मेरा
हम अहसासों के पुल बनाया करते थे,
आज भी हम ठण्डी आहें भरा करते हैं
कागज के जहाज अक्सर उछाला करते हैं।

जब मौका मिला था मुलाकात का उनसे
उनकी सखियों के बीच हम ही शरमाया करते थे,
कॉफी हॉउस में बैठ कर हम
चाय मंगाया करते थे,
आज भी देखो हम ठण्डी आहें भरा करते हैं
कागज के जहाज अक्सर उछाला करतें हैं।

जब इकरार की बारी आई थी
छत पर गुलाब लगा हम इजहार किया करते थे,
प्रेम पत्र को, जहाज भूल हम
नाव बना कर उछाला करते थे,
नाव बिन पतवार ऐसी बहा करती थी
इजहारे मोहब्बत उनके बाप तक पहुँच जाया करती थी,
इकरार में पिटाई का पैगाम आया करता था
मोहब्बत की ताकत ने नही तब
बाहुबल मुझे बचाया करता था,
आज हम वही गलती सुधारा करतें हैं
कागज की नाव नही अब
जहाज को उछाला करतें हैं,
आज भी हम ठण्डी आहें भरा करतें हैं
कागज के जहाज अक्सर उछाला करतें हैं !!

35 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

अंकल-आंटी देखिये आपका बेटा क्या कर रहा है....... बन चुका ये IAS.......

Kulwant Happy ने कहा…

धूप सेकने के बहाने छत्त पर बैठा करते थे,
वो भी जान बुझकर आंगन में टहला करते थे
हम ही नहीं, वो भी तो मन मैला करते थे

sandeep sharma ने कहा…

bahut hi khoob...
to aajkal ye sab chal raha hai...
khoobsurat rachna...

निर्मला कपिला ने कहा…

ांअरे बेटा अब बस करो कुछ पढने लिखने मे भी ध्यान लगा लो । तुम्हें बाहर पढ्ने के लिये भेजा है ना कि कागज़ के जहाज उछालने के लिये । आज से छत पर जाना मना । वैसे रचना अच्छी है लिखते रहो। शुभकामनायें

मैं आज़ाद हूं ने कहा…

laldpan ka vo pahla pyar,
vo hatho me likhna L plus R,
vo dena tohfe me sone ke baliya,
vo lena dosto se paise udhar,

Amit K Sagar ने कहा…

बीते हुए दिनों का भ्रमण करा दिए! बहुत ही अच्छा लिखा है आपने. जारी रहें.

---

Till 25-09-09 लेखक / लेखिका के रूप में ज्वाइन [उल्टा तीर] - होने वाली एक क्रान्ति

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

Lokendra ji ,

Ab ye thandi aahein bharni chodiye...aur kashti mein bitha laiye use ....!!

Randhir Singh Suman ने कहा…

धूप सेकने के बहाने छत्त पर बैठा करते थे,
वो भी जान बुझकर आंगन में टहला करते थे.nice

Balwant Singh ने कहा…

ab mai kya likhu kafi kuchh likha ja chuka hai....
bas etna jaroor likhana chahuga---

''halka hole''

शोभना चौरे ने कहा…

vaise aapne kavita bahut achhi likhi hai.baki mai nirmlaji se shmat hoo.
auntyo ka kam to hidayt dena hi hai
bhut bhut shubhkamnaye

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut hi achhi rachna hai

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

hi...hi.....hi....majaa aa gayaa.....

Vandana Singh ने कहा…

जब मौका मिला था मुलाकात का उनसे
उनकी सखियों के बीच हम ही शरमाया करते थे,
कॉफी हॉउस में बैठ कर हम
चाय मंगाया करते थे,......

नाव बिन पतवार ऐसी बहा करती थी
इजहारे मोहब्बत उनके बाप तक पहुँच जाया करती थी,
इकरार में पिटाई का पैगाम आया करता था......kya baat hai .wah bahut hi badhiya ..apke blog par aakar accha laga ..
n thanks 4 coming on my blog n giving ur comment.thanks again

प्रिया ने कहा…

wow..lokendra hamko to "प्रेम पत्र को, जहाज भूल हम
नाव बना कर उछाला करते थे,
नाव बिन पतवार ऐसी बहा करती थी
इजहारे मोहब्बत उनके बाप तक पहुँच जाया करती थी,
इकरार में पिटाई का पैगाम आया करता था
मोहब्बत की ताकत ने नही तब
बाहुबल मुझे बचाया करता था,
आज हम वही गलती सुधारा करतें हैं
कागज की नाव नही अब
जहाज को उछाला करतें हैं,"


ye lines gazab lagi.....pita ji ke saath jara unke bhaiya aur chacha tau bhi shamil ho jate to maja aa jata :-)

बेनामी ने कहा…

उत्तम...काफी अच्छी लगी ये रचना खाश तौर पे....
मोहब्बत की ताकत ने नही तब
बाहुबल मुझे बचाया करता था,

लिखते रहिये यू ही......

Unknown ने कहा…

Bahut khub.... tum itana gahra kaise soch lete ho. yaar tum bahut ashiq mizaz lagte ho..... keep it up.

Arvind

roushan ने कहा…

वैसे वो आजकल हैं कहाँ?
:-)

आशीष खण्डेलवाल (Ashish Khandelwal) ने कहा…

अच्छी रचना.. हैपी ब्लॉगिंग

Ria Sharma ने कहा…

:)))))Interesting !!!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

sundar prastuti hai ....yaad taaza kara di guzre zamaane ki ....

सत्य प्रिय ने कहा…

अच्छा तो ऐसे ऐसे भी गुल खिलाये गए हैं.......... खैर..... खुदा खैर करे ...और आप यू ही लिखते रहे...............

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

apne raaz khud hi khol rahe hai....interesting poem...

प्रज्ञा पांडेय ने कहा…

sunder abhivyakti prem ka yeh bhi ek roop hi hai .

Vidushi ने कहा…

Bhai wah!!!
Lagta h jaise kisi k dil ki baat aapne mujh tak pahuncha di ho...

संदीप कुमार ने कहा…

आंखें उनसे चार हुई थी जब
वो नजरों से कुछ तीर चलाया करते थे
दिल जब घायल हो गया मेरा
हम अहसासों के पुल बनाया करते थे

वाकई इसी सुंदर अहसास का आभास मुझे भी है, बस अगर अहसास दुस्‍साहस बन जाए तो, रब्‍ब राखा...

admin ने कहा…

जिंदगी के करीब लेकर जाती है आपकी कविता।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

ज्योति सिंह ने कहा…

आज भी हम ठण्डी आहें भरा करतें हैं
कागज के जहाज अक्सर उछाला करतें हैं,
कभी थी जिन्हें हमदम बनाने की चाहत
छत पर बैठ उनकी खिड़कियों में झाँका करतें थे,
देखें कोई जब, नजरें किताबों में उतारें हम
तस्वीर उन्ही की बनाया करते थे,
हम आज भी ठण्डी आहें भरा करतें हैं
कागज के जहाज अक्सर उछाला करतें हैं।
bahut pyari rachana hai .

Dr. Manish Kumar Mishra ने कहा…

/पिछले २ अक्टूबर २००८ की शाम
गांधीजी के तीन बंदर राज घाट पे आए.
और एक-एक कर गांधी जी से बुदबुदाए,
पहले बंदर ने कहा-
''बापू अब तुम्हारे सत्य और अंहिंसा के हथियार,
किसी काम नही आ रहे हैं ।
इसलिए आज-कल हम भी एके४७ ले कर चल रहे हैं। ''

दूसरे बंदर ने कहा-
''बापू शान्ति के नाम ,
आज कल जो कबूतर छोडे जा रहे हैं,
शाम को वही कबूतर,नेता जी की प्लेट मे नजर आ रहे हैं । ''

तीसरे बंदर ने कहा-
''बापू यह सब देख कर भी,
हम कुछ कर नही पा रहे हैं ।
आख़िर पानी मे रह कर ,
मगरमच्छ से बैर थोड़े ही कर सकते हैं ? ''

तीनो ने फ़िर एक साथ कहा --
''अतः बापू अब हमे माफ़ कर दीजिये,
और सत्य और अंहिंसा की जगह ,कोई दूसरा संदेश दीजिये। ''

इस पर बापू क्रोध मे बोले-
'' अपना काम जारी रखो,
यह समय बदल जाएगा ।
अमन का प्रभात जल्द आयेगा । ''

गाँधी जी की बात मान,
वे बंदर अपना काम करते रहे।
सत्य और अंहिंसा का प्रचार करते रहे ।
लेकिन एक साल के भीतर ही ,
एक भयानक घटना घटी ।
इस २ अक्टूबर २००९ को ,
राजघाट पे उन्ही तीन बंदरो की,
सर कटी लाश मिली ।
Posted by DR.MANISH KUMAR MISHRA at 08:03 0 comments
Labels: hindi kavita. hasya vyang poet, गाँधी जी के तीन बंदर
Reactions:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

जब इकरार की बारी आई थी
छत पर गुलाब लगा हम इजहार किया करते थे,
प्रेम पत्र को, जहाज भूल हम
नाव बना कर उछाला करते थे,
नाव बिन पतवार ऐसी बहा करती थी
इजहारे मोहब्बत उनके बाप तक पहुँच जाया करती थी,
इकरार में पिटाई का पैगाम आया करता था
मोहब्बत की ताकत ने नही तब
बाहुबल मुझे बचाया करता था,
आज हम वही गलती सुधारा करतें हैं
कागज की नाव नही अब
जहाज को उछाला करतें हैं,
आज भी हम ठण्डी आहें भरा करतें हैं
कागज के जहाज अक्सर उछाला करतें हैं !!

bilkul sahi kaha hai bhai yahan to....

kshama ने कहा…

Waah ! Bas ekhee shabd hai! Any alfaaz to avtarit ho gaye!

Sunita Sharma Khatri ने कहा…

लोकेन्द्र जी ,
मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है मुझे सबसे अच्छा आपके ब्लाग का लेआउट लगा। आप प्रोफशनल न होकर भी अच्छा लिख लेते है.....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुन्दर रचना है जी।
बधाई!

रंजू भाटिया ने कहा…

:) रोचक ..कागज के जहाज :)

M VERMA ने कहा…

जहाज भूल हम
नाव बना कर उछाला करते थे,
नाव बिन पतवार ऐसी बहा करती थी
इजहारे मोहब्बत उनके बाप तक पहुँच जाया करती थी,
बहुत सुन्दर

Science Bloggers Association ने कहा…

आम आदमी की जिंदगी को आपने बहुत सुंदर ढंग से अपनी रचना में पिरो दिया है।
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