एक दिन पार्क में बैठा मै किसी सोच में डूबा था| तभी वहाँ कुछ रोचक प्रसंग दिखाई पड़ा, जिसे मैंने कागज पर उतार कर उस तीर से एक और निशाना साधने की कोशिश की| जिसे मै और अच्छा कर सकता हूँ, लेकिन दिमाग के थके होने और जल्दबाजी के कारण जैसे बन पड़ी आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ| संशोधन आगे होता रहेगा......अब जरा आप गौर फरमाइएगा......
तन ढकने में
असमर्थ कपड़ो संग
प्रेमपाश में
देख इक लड़की को
बुजुर्गियत के दूत से
आवाज आई
ज़माना बदल गया है,
गौर फ़रमाया तब
बोल पड़े
बेटा तुम
पूरे कपड़ों में
घर से
निकली थी
जवाब कुछ
उनसा ही आया
पापा अब
मौसम है बदल गया,
प्रेमाभिनय में
छोड़ उन्हें
फोन पर
किसी से
कहतें हैं
डार्लिंग मत
आना यहाँ तू
मजमा कुछ अब बदला है,
सबको अब
सन्देश मिला था
मन तो अब भी
है वहीं
बस तन का रंग
जरा सा बदला है
ज़माना तो
देखो है वही
बस स्वरुप
थोडा सा बदला है !!
23 टिप्पणियां:
बस तन का रंग
जरा सा बदला है
संशोधन के बिना ही यह संशोधित है
बहुत सुन्दर
बहुत सुन्दर...
ज़माना तो
देखो है वही
बस स्वरुप
थोडा सा बदला है !!
--कितना सही कह रहे हैं इस रचना के माध्यम से. उम्दा!! :)
क्या बात है। बेहद खूबसूरत व दिल से लिखी गयी रचना। बहुत-बहुत बधाई
ज़माना.......इस कदर बदला कि हवाएँ भी शर्माने लगीं......
आज के परिप्रेक्ष्य में बहुत ही जबरदस्त रचना है.......
और हाँ लोकेन्द्र जी , डरना नहीं है. पढना मुख्य बात है !
पर बिना पढ़े,यूँ ही एक बधाई देना हास्यपूर्ण बात है........है न?
vआपकी प्रायः सभी रच नाएँपढ़ी ,अच्छा लिखते हैं आप । मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया .aa
आप जिसको पीछे छोड़ आए,
जिससे नाता तोड़ आए,
हमतो फिर से नाता बनाने जा रहे हैं
भूले नहीं आदिवासियों को दिखाने जा रहे हैं
जंगल नहीं तो क्या बेलिबास तन तो होंगे
great....
बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! बधाई!
ज़माना तो
देखो है वही
बस स्वरुप
थोडा सा बदला है
bahut hi khoobsoorat bhaav abhivyakti ke saath......... ek sunder rachna......
अच्छा लगा......की भूत और वर्तमान के संबंधो की इतनी गहरी और रोचक समझ हों गयी है...........
लोकेन्द्र,
जहाँ भी जाए अपने काम की चीज़ें चुन ही लेता है इंसान .चुनाव अच्छा है .
लोकेन्द्र जी नए ज़माने की हवा को देखते हुए ही एक कवि ने कहा है की 'जबसे घर में बेटी मेरी जवान होने लगी,मुझको इस दौर के गाने नहीं अछे लगते.अच्छी कविता है .badhai
वाह भाई मान गये आपको...बेहद खूबसूरत रचना।
बहुत ही सुंदर भाव लिए हुए आपकी ये पंक्तियां बदलते हुए जमाने की।
हाँ जमाना बदल गया है । अब मान लेना चाहिये। अच्छी रचना।
सच में एक अच्छी अभिव्यक्ति।
सुन्दर रचना।
... बेहतरीन !!!!
thodaa? amaa badrang ho chala hai
sach mein jamana badal gaya hai ............
lekin sabse pahale lokendraji padhna hai ........
Shubkamnayen.
jmanne hamse hai aur hamne hi apna svroop badal liya hai to jmana to badla dikhega hi .
bahut achhi abhivykti ham jo mhsus karte hai vahi hmari svedansheelta ko prkat karti hai
vaakai bas swaroop thoda sa badla hai....bahut sunder likha hai.
han sach me jamana badal gaya hai
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