लिखा मैंने इसे काफी पहले था लेकिन आज फ़िर से इसे आप सब के सम्मुख पुनः प्रस्तुत कर रहा हूँ। ये रचना तब आई थी जब हम सब मित्र लखनऊ विश्वविद्यालय की जिंदगी में मस्त थे। और देर रात फ़िल्म देख कर और मस्ती करके जब मै अपने कमरे पर आया तो इकदम अकेला था, तब ही जो भावनाए आई उसे एक पन्ने पर दर्ज कर दिया..... वो अब आपके सामने है......
रात की तनहाई में
इक बार फ़िर हम आ ही गए
न चाहते हुए
अपनी कमजोरी छिपा ही गये,
किताबों से दूर हैं
और कलम चलाते गये,
इसी में
अपनों की कमी हटाते गये,
दोस्त खोजते हैं हमें
और हम ख़ुद को छिपाते गये,
जब सामने लाया ख़ुद को
सब मुझ में कमी बतातें गये,
हम भी नादान थे
सबको बातों में उलझातें गये,
सब महसूस करते हुए
वो दिल को बहलाते गये,
भूलतें हैं हम भी
लेकिन बिछड़े याद आतें गये,
क्यों बिछड़े या मिलें हम
इक सवाल उठातें गये,
हर बार भूलने की कोशिश की
यादों की आड़ में हर कदम हटाते गये,
दोस्तों का साथ हुआ
तो दुनिया को खुशी दिखातें गये,
मंजिल की तलाश में हम
इक साथ कदम बढ़ातें गये,
सब मंजिलो की ओर बढ़े
मुझे तनहाई महसूस कराते गये,
तनहाई में इक बार फिर हम आते गये
रात की तनहाई में हम आतें गये !!
इक बार फ़िर हम आ ही गए
न चाहते हुए
अपनी कमजोरी छिपा ही गये,
किताबों से दूर हैं
और कलम चलाते गये,
इसी में
अपनों की कमी हटाते गये,
दोस्त खोजते हैं हमें
और हम ख़ुद को छिपाते गये,
जब सामने लाया ख़ुद को
सब मुझ में कमी बतातें गये,
हम भी नादान थे
सबको बातों में उलझातें गये,
सब महसूस करते हुए
वो दिल को बहलाते गये,
भूलतें हैं हम भी
लेकिन बिछड़े याद आतें गये,
क्यों बिछड़े या मिलें हम
इक सवाल उठातें गये,
हर बार भूलने की कोशिश की
यादों की आड़ में हर कदम हटाते गये,
दोस्तों का साथ हुआ
तो दुनिया को खुशी दिखातें गये,
मंजिल की तलाश में हम
इक साथ कदम बढ़ातें गये,
सब मंजिलो की ओर बढ़े
मुझे तनहाई महसूस कराते गये,
तनहाई में इक बार फिर हम आते गये
रात की तनहाई में हम आतें गये !!
25 टिप्पणियां:
'Do baten yehshas ki.....'
mai danveer gautam,
Aap ke is kabita ko padha aur mhsush karte huye kisi sayer ki ek line do line pada-
" Koi surya se kah de ki apni kirno ko gin kar rakhe, hum dharti ke kad-kad ko chamakna sikha raha hun"
very fantastic your poem.
from
danveer gautam
'Do baten yehshas ki.....'
mai danveer gautam,
Aap ke is kabita ko padha aur mhsush karte huye kisi sayer ki ek line do line pada-
" Koi surya se kah de ki apni kirno ko gin kar rakhe, hum dharti ke kad-kad ko chamakna sikha raha hun"
very fantastic your poem.
from
danveer gautam
मै अक्सर आपकी रचनाएँ पढ़के स्तब्ध हो जाती हूँ ..ऐसे लगता है ,मेरे मनकी बात को यहाँ ज़ुबाँ मिल गयी हो ..
बेहद ज़हीन ख़यालात और अभिव्यक्ति ..इससे ज़्यादा क्या कहूँ ? हम कई बार बेजान चीज़ों का सहारा ले लेते हैं...और जीवन से खुदको महरूम कर देते हैं...जब सच सामने आता है तो कई बार देर हो चुकी होती है..
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
http://shama-baagwaanee.blogspot.com
http://shama-kahanee.blogspot.com
bahut hi khubsoorat ehasas hai ...........jisake bare me jitana bhi kaha jaye kam pad jayegi.....
bahut hi khubsoorat ehasas hai ...........jisake bare me jitana bhi kaha jaye kam pad jayegi.....
अच्छे ख़यालात हैं.
बहुत सुन्दर कहा आपने
मंजिल की तलाश में हम
इक साथ कदम बढ़ातें गये,
सब मंजिलो की ओर बढ़े
मुझे तनहाई महसूस कराते गये,
तनहाई में इक बार फिर हम आते गये
रात की तनहाई में हम आतें गये !!
बढ़िया लगी यह पंक्तियाँ
आप बहुत अच्छा लिखते हैं और ये कविता जो रात की तन्हाई से उपजी है लाजवाब है...बधाई...
नीरज
बहुत ही खूबसूरत लिखा है....तन्हाई का गहरा एहसास
बहुत खूब.
Wonderful. Keep on writing. My best wishes for you.
Lots of Love
Chandar Meher
shandar
tanhaayi ke ehsaason ko bakhoobi utara hai........
"yaadon ki aad mein har kadam hatate gaye" ...kaafi kuch keh jaate hain yeh shabd....
accha likhte hain..likhte rahiye !!
bahut hee khubsurat ehsas hai. lajvab rchna
अति सुन्दर
AAPKE AKELE MI LIKHI KAVITA HAMESHAA HI BEHATARIN HOTI HAI ... HAMESHAA KI TARAH YE KAVITAA BHI BEHAD UMDAA HAI ... BAHOT BAHOT BADHAAYEE KUBUL KAREN...
ARSH
आपके अहसासात पढ़कर बहुत अछा लगा . कल एक जगह बातें हो रहीं थीं वहां यह उजागर हुआ कि घर का कूड़ा बहार सड़क पर न फेको , घर के राज़ , कमियां , चाल चलन , हैसियत सब शहर वालों के सामने आ जाती है घर के कूडे को , Dustbin में ही डालो वहीँ सुरछित रहता है , मगर साहित्य आदमी कि अपनी विचार , समाज के चलन को दिखता है धन्यवाद्
bahut sunder
तन्हाईयाँ ही तो अक्सर लाजवाब रचनायें दे जाती हैं जिन्हें कभी आप रेल मे तो कभी कमरे की चार्दिवारी मे महसूस करते हैं सुन्दर रचना् शुभकामनायें
jo mai hu bas likh dala apne bas itna hi hai kahna mare dost aasi hi hamesha likhate rahna
awantika
IN TANHAAIYON MEIN HI SRAJAN HOT HAI NAYE KAAVY KA, NAYEE RACHNA KA.... LAJAWAAB LIHA HAI
बेहद खूबसूरत रचना. आभार.
सब मंजिलो की ओर बढ़े
मुझे तनहाई महसूस कराते गये,
तनहाई में इक बार फिर हम आते गये
रात की तनहाई में हम आतें गये !!
its simply superb...
एक टिप्पणी भेजें