कहतें हैं ठोकरे इन्सान को चलना सीखती हैं। इसका उदाहरण बचपन से ही मिलता चला आ रहा है। जब अपने बडों से ज्ञात होता है की बचपन में पहला कदम बढ़ाने से पहले हमने कितनी ठोकरे खायी है। जिसका सबूत भी शायद शरीर के किसी भाग पर किसी पुराने चिन्ह के रूप में दिख जाता है। आगे और सबूत के तौर पर विद्यमान है जब हम बचपन से निकल कर साईकिल सीखते समय अपनी कोहनी छीलते है और लोग कहतें है अब तुम्हे चलाना आ जाएगा। आगे जब स्कूटी या मोटर साईकिल सीखते समय पैर चोटिल करते हैं तो सुनाई पड़ता है अब परिपक्व हो जाओगें। और आगे बढे तो कार सीखतें समय जब अच्छी तरह उसमे धन लगाने का बंदोबस्त कर दें तब फ़िर एक मुहर लगती है की अब सुधर जाओगे। और कही यातायात नियमो के तहत दंड का भुगतान कर बैठे तब हो जाता है की अब मास्टर हो गए।
टीक इसी प्रकार आज कई दिनों से एक उलझन में रहने के बाद मै भी ब्लॉग जगत के बारे में कुछ आंशिक रूप से सीख गया। पहला तो यही की यहाँ बस मस्त रहो। इसके आगे बस यही कहता चलूँगा की हमेशा यहाँ सकारात्मक सोच के साथ ही मौजूदगी दर्ज कराइए।
"खुशियाँ बाटो,
ज्ञान बाटो,
बाटो कुछ एहसासे भी,
जो भी सब को खुशी दे दे
बाटो वो जज्बातें भी॥"
हैप्पी ब्लॉगिंग...
टीक इसी प्रकार आज कई दिनों से एक उलझन में रहने के बाद मै भी ब्लॉग जगत के बारे में कुछ आंशिक रूप से सीख गया। पहला तो यही की यहाँ बस मस्त रहो। इसके आगे बस यही कहता चलूँगा की हमेशा यहाँ सकारात्मक सोच के साथ ही मौजूदगी दर्ज कराइए।
"खुशियाँ बाटो,
ज्ञान बाटो,
बाटो कुछ एहसासे भी,
जो भी सब को खुशी दे दे
बाटो वो जज्बातें भी॥"
हैप्पी ब्लॉगिंग...
5 टिप्पणियां:
बहुत सही कहा आपने
पर
जज़्बात ही तो नही बंट पा रहा है
हो जाये ऐसा ही सार्थक सबके मन का भाव।
फिर ब्लागिंग का इस दुनिया मे होगा खूब प्रभाव।।
खुशी हुई आपकी सकारात्मक सोच देख कर ....छोटी मोटी उलझने तो आती रहती हैं इसका मतलब ये नहीं ब्लॉग लिखना छोड़ दें ...!!
बिल्कुल सही कहा आपने।
एकदम सही!!
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