शनिवार, 8 नवंबर 2008

"इक मित्र आई थी"

इक मित्र आई थी
देखों मेरे ख्यालों में
सपनों के उस दौर ले गई
मस्ती भरी बहारों में
सारी कमियों को भूल गया मै
उसकी मुस्कुराहट भरे जादू में
फिर करनी थी हमकों
दूर कहीं वीराने में
भटक रहें थे तलाश में जिसके
हम झंझट की सवारी में
फिर गुम थे हम
रहकर दुनिया की नजरों में
ले चलीं थी झंझट हमकों
यादों की फुलवारीं में
कुछ खुशियाँ खोजीं थी हमनें
यादों भरीं बहारों में
पर खुशी मिलीं न वो
जिसकी थी तलाश हमें
तलाश पूरी होती भी कैसे
ठहरें हम जो सपनों में
वो तो आई थी बस
खुशियों की अभिलाषा में
खुशी आई थी
देखो मेरे ख्यालों में
इक मित्र आई थी
देखों मेरे ख्यालों में !!

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया!!