सोमवार, 10 नवंबर 2008

"इक और सुबह आई"

आज फिर दोस्ती के दिन की वो सुनहरी सुबह आ गई
शांत सी जिंदगी में कमी का अहसास दिला गई
हम न थे कभी तनहा फिर भी तनहाई महसूस करा गई
खुशियों में थोडी सी कमी का अहसास दिला गई
जिंदगी तो खुशनसीब है की दोस्ती साथ निभा गई
देखों आज फिर वो सुनहरी सुबह आ गई
वादा था किसी का लेकिन हमें इंतजार न था
यादें ही मुबारकबाद देकर उसका वादा निभा गई
इंतजार न था इसका लेकिन अपने आने का अहसास दिला गई
देखों दोस्तों आज फिर वो सुनहरी सुबह आ गई
इस दिन का अब नाम क्या रखूं ये सवाल उठा गई
जवाब मांगते ही बीतें दिनों की याद दिला गई
यादें भी दिल में इक कसक उठा गई
जरूरत तो नही लेकिन इक कमी का अहसास दिला गई
देखों मित्र दोस्ती के दिन की खिलखिलाती सुबह आ गई !!

1 टिप्पणी:

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत अच्‍छा लिखा है।