सोमवार, 10 नवंबर 2008

"मीत बना मै घूम रहा हूँ"

मीत बना मै घूम रहा हूँ
साथ लिए वीरानी को,
यादों का अवरोध लगाकर
बस यह आस लगता हूँ !!

काश कहीं मिल जातें अपने
मिल जाता फिर उनका साथ,
संग होते सब मित्र हमारे
साथ लिये सर्मध्दि को,

मुझे दूरी का हे मित्रों
कष्ट नहीं कुछ भी होता,
मिलेंगी हमकों मंजिल इकदिन
तब साथ रहेगें बन हमसाया !!

7 टिप्‍पणियां:

ghughutibasuti ने कहा…

अच्छी आशावादी कविता !
घुघूती बासूती

शोभा ने कहा…

काश कहीं मिल जातें अपने
मिल जाता फिर उनका साथ,
संग होते सब मित्र हमारे
साथ लिये सर्मध्दि को,
अच्छा लिखा है। आपका स्वागत है।

Yamini Gaur ने कहा…

very nice
For art visit my blog please

!!अक्षय-मन!! ने कहा…

bahut acche...... mitr

अभिषेक मिश्र ने कहा…

काश कहीं मिल जातें अपने
मिल जाता फिर उनका साथ,
संग होते सब मित्र हमारे
साथ लिये सर्मध्दि को,
खूब लिखा है आपने. बधाई. स्वागत मेरे ब्लॉग पर भी.

तरूश्री शर्मा ने कहा…

आपकी कविता पढ़कर मुझे अपनी एक कविता याद आ गई।
आस का बादल उड़ता उड़ता मुझ तक ही तो आएगा।
रात का बादल धुंधला धुंधला होकर के खो जाएगा।
आपकी कविता में भी प्रबल आशावाद झलक रहा है। बढ़िया रचना है...बधाई।

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

wah jee wah,
narayan narayan