
"ओ रे बिस्मिल काश आते आज तुम हिन्दोस्ताँ
आज का लौंडा ये कहता हम तो बिस्मिल थक गये
अपनी आज़ादी तो भइया लौंडिया के तिल में है
आज के जलसों में बिस्मिल एक गूँगा गा रहा
आज के जलसों में बिस्मिल एक गूँगा गा रहा
और बहरों का वो रेला नाचता महफ़िल में है
हाथ की खादी बनाने का ज़माना लद गया
आज तो चड्ढी भी सिलती इंगलिसों की मिल में है!!"
यहाँ हमें कुछ और भी देखने को मिला वो है विश्वास घातियों के अनेक रूप और सच्चे साथियों के कुछ विशेष रूप। दुनिया जीतने के अपने ख्वाब को साकार करने के लिए ग़लत मार्ग के चुनाव का फल तो यहाँ ग़लत दिखाया गया है। लेकिन उसके अंत में वर्तमान के मुताबिक ही बुराई की जीत भी दिखायी गई है। जो इस बात को भी सत्य करती है की वो उससे ईमानदार इसलिए है क्योकि उसे चोरी के मौके कम मिले हैं। शायद इसीलिए फ़िल्म के अंत में प्यासा फ़िल्म के पुराने गाने को नये रूप से प्रस्तुत कर यर्थात का क्षणिक अनुभव कराया गया है।
"ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है..."
आज तो चड्ढी भी सिलती इंगलिसों की मिल में है!!"
यहाँ हमें कुछ और भी देखने को मिला वो है विश्वास घातियों के अनेक रूप और सच्चे साथियों के कुछ विशेष रूप। दुनिया जीतने के अपने ख्वाब को साकार करने के लिए ग़लत मार्ग के चुनाव का फल तो यहाँ ग़लत दिखाया गया है। लेकिन उसके अंत में वर्तमान के मुताबिक ही बुराई की जीत भी दिखायी गई है। जो इस बात को भी सत्य करती है की वो उससे ईमानदार इसलिए है क्योकि उसे चोरी के मौके कम मिले हैं। शायद इसीलिए फ़िल्म के अंत में प्यासा फ़िल्म के पुराने गाने को नये रूप से प्रस्तुत कर यर्थात का क्षणिक अनुभव कराया गया है।
"ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है..."
2 टिप्पणियां:
ई ही आजकल मौज़ में हैं.
aapki samiksha pasand aayi
एक टिप्पणी भेजें