शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

बरसीं लाठियाँ, हाय लोकतंत्र...

देश में और दिल्ली में उस राष्ट्रीय पार्टी की सरकार है जिसने देश को पहली लोकतांत्रिक सरकार दी थी। लेकिन लोकतंत्र के नाम पर क्या मिला अपने बेबशपन को देखकर यह प्रश्न कभी-कभी जहन को काफी उद्वेलित कर देता है। सन् १९४७ के पूर्व जहाँ हमारे पूर्वजों का अंग्रेजों द्वारा शोषण होता था, अब हमारे लिए सरकारी मशीनरी ने यह काम संभाल लिया है। जिसका कुछ दुखद बयान मुझे यहाँ प्रस्तुत करना पड़ रहा है।
हम दिल्ली के मुखर्जी नगर क्षेत्र में रहकर यू.पी.एस.सी. की प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहें हैं। यहाँ पर रह रहे हजारों छात्रों का कई प्रकार से शोषण स्थानीय लोगो द्वारा किया जाता है। जिसमे इनके रूप कभी मकान मालिक का, कभी दुकानदार का, कभी कोचिंग का, कभी कमरा दिलाने वाले दलाल का या फिर यहाँ के जाहिल ख़ुद को बादशाह समझते लोगों में से ही रहता है। जिसमे इनकी कहीं न कहीं से सहयोगी सरकारी मशीनरी भी रहती है।
इसी का एक १२ अगस्त २००९ का उदाहरण यहाँ प्रस्तुत है की एक छात्र को एक स्थानीय दुकानदार ने सिर्फ़ इसलिए बुरी तरह हाकी और लोहे के राड से पीट दिया क्योंकि वह उसके दुकान के नीचे सीढियों के पास चाय पी रहा था। हालांकि वही एक चाय की दुकान भी स्थापित है। पिटाई से उसे बहुत गंभीर चोटें आई, और उसे जख्मी हालत में उसके कुछ मित्रो द्वारा हॉस्पिटल में भर्ती किया गया। कुछ लोगो से सुनने में आया है की उसके सिर में ८ टांके लगे हैं और गाल भी पूरा फट गया हैं। परन्तु उसके मित्रो द्वारा पुलिस को प्रथम सूचना रिपोर्ट देने पर, पुलिस उसे दर्ज न करके, न ही कोई कार्यवाही करके उन्हें ही गिरफ्तार कर पूछताक्ष हेतु थाने ले जाने लगी। देखतें ही देखतें ये ख़बर पूरे मुखर्जी नगर और आस-पास के क्षेत्रों में फ़ैल गई। जिससे अभी तक शोषित छात्र एक साथ जाग गए और सैकडों की संख्या में सड़को पर आकर उस दूकानदार की गिरफ्तारी की मांग करने लगे। परन्तु काफी देर तक ये मांग पूरी नही हुई और जब हुआ तो मामूली सी धारा में पुलिस ने उसे हिरासत में लेकर सुरक्षा प्रदान की। तब छात्रों का सब्र टूट गया और उन्होंने थोड़ा उग्र रूप धारण करते हुए रास्ता जाम कर दिया।
इस बात की जानकारी मुझे रात में करीब १० बजे हुई। जब एक फोन कॉल ने मुझे ये अवगत कराया की हमारा एक मित्र बुरी तरह घायल है और हॉस्पिटल में है। वो रोज की तरह मुखर्जी नगर में एक रेस्त्रां से रात का खाना खा के जा रहा था। तभी उसने देखा की सामने से कुछ पुलिस रुपी गुण्डे उसकी तरफ़ तेजी से लाठी भांजते हुए आ रहे थे तब वो खुद को बचाने के लिए वही इक परिचित के प्रथम तल पर स्थित कमरे में घुस गया लेकिन पुलिस ने तो शायद उससे कोई दुश्मनी कर ली थी की ऊपर मकान में दरवाजा तोड़कर उसे साथ ही अन्य मौजूद लोगो को मारते-मारते बेदम कर दिया। हमारे उस मित्र का नाम 'परवेज अंसारी' है, जिसे पुलिस दंगाई की संज्ञा देकर पीटने के आरोप से पल्ला झाड़ रही है। आपको मै बता दूँ की इस शख्स का कद मात्र ५ फीट ५ इंच के करीब है और वजन ५४ किलो ग्राम से ज्यादा नही होगा और बी.टेक. की डिग्री प्राप्त यह शख्स आई.ए.एस. अधिकारी के पद को प्राप्त करने हेतु अपनी नौकरी से त्याग पत्र देकर यहाँ तैयारी कर रहा है।
इसे पुलिसिया गुंडों ने इस प्रकार पीटा है की उसके सिर में तीन टांके लगे हैं और हाथ व पैर में भी पट्टियाँ बंधी हैं साथ ही अंदरूनी चोटों के कारण न वो ठीक से बैठ पा रहा है न ही लेट पा रहा है, जिससे दो-दो कोचिंग रहने के बावजूद तथा आगामी प्रतियोगी परीक्षाओ के रहने के बावजूद ये पढाई न करके स्वास्थ लाभ लेने के लिए मजबूर है ये तो मेरे मित्र का उदहारण है जबकि ऐसा यहाँ शाम से ही कई चरणों में पचासों छात्रों के साथ हुआ है शर्मिंदगी तब और आ जाती है जब ये पता चलता है की कई छात्राओं के साथ भी यही हुआ है वो भी वो जो अपनी-अपनी कोचिंग से छूटे थे या जो वहां स्थित ए.टी.एम. से रुपये निकालने गए थे या वो जो किताबें या कुछ अन्य सामान खरीदने गए थे या परवेज की भांति जो रात का खाना खाने गए थे
एक बात मै यहाँ स्पष्ट कर देना चाहता हूँ की भारत के अन्य क्षेत्रो से आये विद्यार्थियों पर ही मुखर्जी नगर के और आस-पास के क्षेत्र की अर्थव्यवस्था निर्भर करती है जिनमे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, और पूर्वोत्तर के राज्यों से आये विद्यार्थियों की संख्या सर्वाधिक है अरे हम अंगुली उठाते हैं आस्ट्रेलिया पर और महाराष्ट्र पर जबकि देश की राजधानी में ही लोगो के साथ क्षेत्रवाद के द्वारा ऐसा शोषण हो रहा है, तब तो सरकारी मशीनरी ही एक प्रश्न चिन्ह बनकर रह जाती है जिसमे शामिल लोगो की अत्यधिक संख्या मुखर्जी नगर में रहकर तैयारी करके सफल हुए प्रतिभागियों की भी है
अब मुझे इस प्रदेश और देश की लोकतान्त्रिक सरकार से कुछ प्रश्नों के उत्तर चाहिए की स्थानीय स्तर पर लोगो से हो रहे यहाँ के शोषण के खिलाफ वो क्या कर रहे हैं? इस लोकतंत्र में बिना किसी पूर्व सूचना के या बिना किसी चेतावनी के निर्दोष छात्रो को बुरी तरह क्यों पीटा गया? कब होगी हमारे ऊपर हुए इस अत्याचार के खिलाफ कार्यवाही? कौन देगा हमारे प्रश्नों का जवाब? क्या अंतर रहा उस दुकानदार और कानून के रक्षक इन पुलिस वालों में? कौन गिरफ्तार करेगा इन दोषियों को? काश मिल सकता हमें इसका जवाब तो आजादी की ६२वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर हम और गर्व से कह पाते की हम विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र वाले देश के निवासी हैं

29 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

मै तो इस पर अफसोस के सिवा कुछ नही कर सकती, लेकिन तुम ये जरूर बताओ की तुम्हे लाठी पड़ी या नही और पड़ी तो कहा पर.

अजय कुमार झा ने कहा…

हद हो गयी ये तो...आप मुझे पूरी बात बताएं...और ये भी मैं इस मामले में आपकी कैसे मदद कर सकता हूँ...मीडिया, पुलिस, कोर्ट ...किसी भी तरह का कोई प्रयास यदि मेरे करने से हो सकता है तो मैं प्रस्तुत हूँ...लोकेन्द्र जी ..हालांकि मैं किसी पिछले अनुभव के कारण अब फोन नंबर देने के पक्ष में नहीं रहता मगर ...अभी इसके अलावा कुछ सूझ नहीं रहा है ...
यदि जरूरत हो तो ....९८७१२०५७६७ ..

shama ने कहा…

Lok tantr me logon ka ekju hona behad zarooree hai..aapsee gile shikve bhool,hame aage badhna hioga,tabhi ek mazboot aur zimmedar loktantr kee rachana hogee..

Afsos nahee,ab antarmujh hoke dekehn,aur khud hoke kya kar sakte hain,wo soche..bleme game bshut ho gaya..
anek shubhkamnayen!

P.N. Subramanian ने कहा…

बड़ी शर्मनाक घटना है. हम पुलिस की कार्यवाही की भर्त्सना करते हैं. संघटित होकर मुकाबला करना ही उचित होगा.

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

ऐसी घटनाएँ बहुत घट रही हैं। वह छात्र स्थानीय दुकानदारों के आपसी झगड़े का शिकार हुआ होना चाहिए। हमारे देश में जो व्यवस्था है उस में रोटियाँ बिखेर दी गई हैं। जिस को जो पल्ले पड़ रहा है वही लिए भाग रहा है। आपस में लोग लड़ाए जा रहे हैं। हर एक को शिकारी बना दिया गया है और वे आपस में एक दूसरे का शिकार कर रहे हैं। जब स्थिति बिगड़ जाती है तो सारा दोष छात्रों पर डाल दिया जाता है। वे स्थानीय निवासी जो नहीं हैं।

देश में न्यायपालिका भले ही न्याय करती हो लेकिन वह पर्याप्त का पांचवाँ हिस्सा भी नहीं है। जब तक न्याय हो तब तक न्याय मांगने वाले को रोंदने का पूरा प्रयास किया जाता है। देश में न्याय नहीं है। न्याय के लिए मांग उठनी चाहिए। न्याय रोटी से पहले की जरूरत है। कम रोटियों को हम बांट कर खा सकते हैं लेकिन न्याय नहीं है और रोटियाँ चाहे जैसे छीन छपट कर ले जाई जा रही हैं तो हम आपस में ही लड़ कर मर जाएंगे। पूरे और त्वरित न्याय के लिए लड़ना होगा।

अनिल कान्त ने कहा…

घटना वाकई बहुत शर्मनाक है...और अगर पुलिस या राजनेताओं का थोडा बहुत कोई बिगाड़ सकता है तो वो है मीडिया...मगर अब वह भी कठपुतली बनती जा रही है....एकजुट हो सही दिशा में लड़ना बहुत जरूरी है

अजित वडनेरकर ने कहा…

शर्मनाक है। आपने जिस तरह से आस्ट्रेलिया व विदेशो में भारतीय छात्रों से दुर्व्यवहार से इस घटना को जोड़ा है वह हमारी समसामयिक चिन्ताओं को मीडिया के नकली चश्मे से देखने की पोल खोलनेवाला नज़रिया है।

अच्छा लगा आपका ब्लाग। शुभकामनाएं...

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

बेहद दुखद घटना है। यह व्यापारिक प्रतिद्वन्द्विता और बढ़ता उपभोक्तावाद जो न करा दे।

MAZHAR ने कहा…

हम यह तो कह रहे हैं सरकार , पुलिस , अधिकारी क्या कर रहे हैं
मगर यह घटना किसी माफिया , डॉन , भीड़ का चरित्र नहीं दर्शाती है यह जो कुछ आप ने लिखा है वोह हमारे समाज का चरित्र है हमारा कितना पतन हो चूका है हम मोहल्ला , शहर , प्रान्त , धर्म ,जात ,पात , तथा वर्ग जैसे कि रेल वाला रेल को , बैंक वाला बैंक को ,MST यात्री MST यात्री को Support करता है.
जैसी जनता होती है वैसा ही उसको एडमिनिस्ट्रेशन मिलता है ,
हम दूसरे का दोष न देख कर अपने को सुधारने का प्र्यतन करें. तब ही व्यवस्था तथा समाज सुधरे गा.
हम सब पैसे कि दौड़ में WIIIFM के सूत्र पर ही चल रहे हैं.

NOTE: WHAT IS IN IT FOR ME ( wiiifm)

Mithilesh dubey ने कहा…

जानकर हैरानी होती है, जब देश के रक्षक ही भक्षक हो जाये। आपके मित्र के साथ जो भी हुआ वह अन्याय पुर्ण घटना है और मानवता को शर्मसार कर रही है। मै तो आपको यही राय दुगां कि आप उन लोगो के खिलाफ कार्यवाई करे और जहां तक हो सकेगा मेरा साथ आपके साथ रहेगा।

हें प्रभु यह तेरापंथ ने कहा…

कृष्ण जन्माष्ट्मी व स्‍वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं !!

जय हिन्द!!

भारत मॉ की जय हो!!

आई लव ईण्डियॉ


आभार

मुम्बई-टाईगर
द फोटू गैलेरी
महाप्रेम
माई ब्लोग
SELECTION & COLLECTION

Krishna Karthik ने कहा…

Yes its tragedy of system. System is such that it desist truer souls to enter. These days society is not able to distinguish genuine "student" from rogues.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

सही मायने में स्वतंत्रता चोर , गुंडों, हत्यारों. बलात्कारियों, और भ्रष्टाचारियों को मिली क्योंकि आजादी से पहले वे ये सब खुले आम नहीं कर पाते थे !

Kuldeep Kumar Mishra ने कहा…

Namshkar!
Bhai ji ham aap se sahmat hain,
ham bhi yahi sochte hain ki kya ham aazad hain.........
काश मिल सकता हमें इसका जवाब तो आजादी की ६२वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर हम और गर्व से कह पाते की हम विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र वाले देश के निवासी हैं

रश्मि प्रभा... ने कहा…

ek dukhad ghatna.....

पुष्प कुलश्रेष्ठ ने कहा…

भारतीय लोकतंत्र का यह एक घिनोना चहेरा है ,जिसमे पुलिस की चहेरा तो बहुत ही डरावना ही रक्षक हो कर भी भक्षक की भूमिका निभा रही है ,पुलिस मैं भी सुधर की जरुरत है ,किन्तु राजनातिक पार्टी सत्ता से बाहर हो तो पुलिस सुधर की बात करती है पर सत्ता में आने पर उनिही को हथियार का रूप मैं प्रयोग करती है,
आखिर हम है हिन्हुस्तानी
स्वतंत्र दिवस की शुभ कामनाये के साथ

अर्चना तिवारी ने कहा…

बड़ी क्रूर एवं शर्मनाक घटना है...अजय जी यदि मदद कर सकें तो बड़ी अच्छी बात होगी...

रचना गौड़ ’भारती’ ने कहा…

आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
रचना गौड़ ‘भारती’

मुनव्वर सुल्ताना Munawwar Sultana منور سلطانہ ने कहा…

जो भी है वो इतना चुभता हुआ है कि कुछ प्रतिक्रिया कर पाने की स्थिति में नहीं हूं? गहरी पीड़ा है

लोकेन्द्र विक्रम सिंह ने कहा…

अजय जी....
आपका बहुत-बहुत आभार जो आप आपने खुद ही हमारे लिए आगे आये लेकिन इक बात मै कहूँगा आपसे की जिस तीनो क्षेत्र को आपने संबोधित किया है वो कैसे मदद करेगी.......
यहाँ रहने वाले हजारों छात्रो में शायद ही कोई यहाँ का वोटर हो..... और जो देश में अभी वोट बैंक की राजनीति चल रही है साथ ही सत्ता दल के प्रत्याशी के ही यहाँ के सीट से विजयी होने को देखते हुए और जिसने खुद पीटा है उससे तो न्याय की आशा न ही रखी जाये..... जैसा की अनिल कान्त जी ने मीडिया के बारे में कहा है तो उन्हें मै बता दूँ की मीडिया ने ये समाचार तो दिया की मुखर्जी नगर में पुलिस और छात्रो की झड़प हुई है.... लेकिन मैंने सारे तो नही लेकिन अधिकतर समाचार पत्र और न्यूज चैनल देखा जिसमे हवाई फायरिंग और यू.पी.एस.सी. के छात्रो की पिटाई को जाने दीजिये लाठी चार्ज की भी चर्चा नही की गयी है, जबकि वही लाठी बरसतें समय कई मीडिया कर्मी और उनकी वैन खड़ी थी तब ये भी अब न्याय दिलाने के प्रश्न चिन्ह में है..... और अब बात रही कोर्ट की तो इसकी जो कार्य करने की शैली है उससे तो सब परिचित हैं और अब आगे हमारे मेन्स एक्साम के रहते अधिकतर सताए गए लोग भी भविष्य के कारण साथ नही हो रहें हैं.......
हमें एक आशा संसद के विपक्ष दल से थी लेकिन वो खुद ही अभी जिन्ना प्रकरण से निकलकर अब हार के कारणों की गुत्थी सुलझाने में लगा है.... राष्ट्र हित के मुद्दे को छोड़ इसके अधिकतर नेता जीवन के आखिरी समय में जो मिल जाये उसे ही बटोरने में लगे हैं....
अब एक उम्मीद मानवाधिकार आयोग की बची है तो अब उसका भी दरवाजा खटखटा लेतें हैं... शायद हमें न्याय मिल सके....?

Unknown ने कहा…

lokendra ji ye problem tabhi dur hogi jab hamare officer ye soche ki vo bhi student the,
lekin dukhad pahalu ye hai ki kal aap IPS ban kar aapne hi employ ko support karoge,ya student ko,ya loktantra ko ?

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत ही शर्मनाक घटना है..............आज भी पुलिस अंग्रेजों के ज़माने वाले तेवर ही apnaaye huve है .............. शर्म की बात है aazaad bhaarat में भी आज तक yehi हो रहा है ............

Awantika singh ने कहा…

pahele wali baat hoti to police station hi bomb sa fuk dete... par behtar yahi hoga ki jake congress sarkar (rahul gandhi sa miley) sa baat kijey mujeh lagta hai hum prayas karne ki bajay kudh hi galat sochane lagte hai. wo sunte hai sab ki .. malim hai mujeh.

awantika singh

जयप्रकाश सिंह ने कहा…

mujhako lagata hai ki rajnitik asamvedansilata ke karan vyavastha par dabav badhata ja raha hai , is karan hisak gatividhiyon me badhottari hi rahi hai, gubar nikalane ka space kam hone ke kar sthitiyan aur badtar ho sakati hai

Urmi ने कहा…

बहुत ही शर्मनाक और दुखद घटना है! स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!

jitendriyam ने कहा…

sad but not surpricee thire has only one option to control unity and do your voice high,this is our 62th indipendence so we sould think that "kab tak"?

बवाल ने कहा…

इस तरह की घटना वाक़ई शर्मनाक है। मगर हमें एक बात बतलाइए के जब हम लोग प्रदर्शन करने जाते हैं तो पूरी तैयारी से क्यों नहीं जाते और ज़रा अक्ल लगा कर क्यों नहीं करते। मेरा मतलब है कि पुलिस के सामने पथराव करने से बेहतर आप सूने में टिट फ़ार टैट करके निकल भागते साँप भी मर जाता और लाठी भी ना पड़्ती। इसीलिए कहते हैं चाय घर पर ही पी ली जाए तो बेहतर है।

Arvind Mishra ने कहा…

ओह शर्मनाक !

Priyanka Telang ने कहा…

बहुत ही शोकजनक और चिंतनीय रवैय्या है पुलिस का ...जिन्हें लोकहित के लिए निहित किया गया है उनके द्वारा इस प्रकार किये जा रहे असामजिक कृत्यों से ना सिर्फ अविश्वास जनक
माहौल उतपन्न होता है बल्कि लोगों के मन मैं घृणा बढती है ...मेरे अनुसार इसमें मीडिया की सहायता ज़रूर लेनी चाहिए क्यूंकि यहाँ हमारे क्षेत्र मैं भी कई ऐसे किस्से हुए हैं जहाँ मीडिया ने के दखल से पुलिस को आवश्यक कदम उठाने पर मजबूर किया है ... ...बाकी आपने अपने ब्लॉग के द्वारा इस वाकिये से सबको अवगत करा ही दिया है ...पर इसे सामाजिक स्तर पे सामने लाना भी आवश्यक है .